Hastmaithun Ke Nuksan Aur Ayurvedic Upchar
हस्तमैथुन के नुकसान और आयुर्वेदिक उपचार
हस्तमैथुन(Masturbation)-
परिचय- मन में काम-भावना जागृत हो और उसकी तृप्ति के लिए पास में कोई साधन(स्त्री या पत्नी) ना होने की स्थिति में जब पुरूष हाथ द्वारा अपने लिंग की त्वचा को सहलाकर मैथुनिक आनंद प्राप्त करने उद्देश्य से जो वीर्य स्खलित करता है, इसे ‘हस्तमैथुन’ कहते हैं।
हस्तमैथुन के कारण-
1. बराबर काम-संबंधी विचारों में खोये रहना।
2. अश्लील उपन्यास पढ़ना।
3. अश्लील चित्र देखना।
4. नाटक, सिनेमा आदि में अधिक रूचि लेना।
5. नंगे चित्र के प्रति आकर्षित होना।
6. लिंग में खुजली होना।
7. जननेन्द्रिय साफ ना करना।
8. हस्तमैथुन के रोगी की संगति में रहना आदि मुख्य कारण हैं।
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हस्तमैथुन के लक्षण-
1. रोगी एकांतप्रिय होता है।
2. स्वभाव से शर्मिन्दा।
3. डरपोक।
4. उत्साहीन।
5. इच्छाशक्ति कमजोर होना।
6. स्मरण शक्ति की कमी।
7. अरूचि।
8. कब्ज़।
9. लिंग की दुर्बलता एवं शिथिलता।
10. सिर दर्द।
11. चक्कर आना।
12. कान से अस्वाभाविक आवाज आना।
13. बहरापन।
14. आँखों के चारों ओर काले दाग।
15. श्रीहीन चेहरा।
16. दुर्बल एवं कृश शरीर आदि होते हैं।
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हस्तमैथुन के परिणाम-
यह कोई शारीरिक रोग नहीं है, बल्कि मानसिक रोग है, जिसमें रोगी मानसिक कुविचारों का शिकार हो जाता है। पूर्ण होशो-हवास की अवस्था में जानबूझ कर अपने हाथ से अपने स्वास्थ्य एवं शरीर को नष्ट कर लेता है। अतः इस योग में औषधि चिकित्सा के साथ-साथ मानसिक चिकित्सा आवश्यक होती है। रोगी को अपने विचार में परिवर्तन लाना चाहिए। गंदे वातावरण, अश्लील साहित्य, कामोत्तेजक दृश्य आदि से दूर रहना चाहिए। सद्-साहित्यों का अध्ययन, कार्य में व्यस्त रहना परमावश्यक है। यदि रोगी ऐसा नहीं करता तो प्रत्येक बार हस्तमैथुन करने के बाद अपने आप कसमें खाता है, ”अब ऐसा नहीं करूंगा।“ लेकिन एकांत पाते ही फिर वही ढाक के तीन पात। या फिर ये कहता है अपने आप से कि ”आज भर कर लूं, आगे नहीं करूंगा।”
परिणामतः अच्छे स्वास्थ्य का युवक भी धीरे-धीरे स्नायुविक रोग, मेरूदण्ड के रोग, मस्तिष्क रोग, प्रमेह, बहुमूत्र, मुच्र्छा, सुस्ती, उन्माद, भगन्दर, यक्ष्मा, आत्महत्या की प्रवृत्ति, क्षय-कास, ग्रहणी स्वप्नदोष हो जाता है। यदि हस्तमैथुन का रोगी अविवाहित हो तो विवाह करने की सलाह दें। संभवतः आदत छूट जाये। वैसे अपवादस्वरूप कुछ ऐसे रोगी भी होते हैं, जो पत्नी के सामने भी हस्तमैथुन करते हैं या पत्नी को ऐसा करने को कहते हैं।
हस्तमैथुन की देसी चिकित्सा-
1. छोटा गोखरू और तिल समभाग चूर्ण बना लें। आधा से एक ग्राम सुबह-शाम मिश्री मिले पर्याप्त दूध के साथ दें।
2. शोधित कुचला 250 मि.ग्रा. सुबह-शाम मिश्री मिले दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
वन्य काहू के बीजों का चूर्ण- 1 से 3 ग्राम सुबह-शाम मिश्री मिले दूध के साथ सेवन करने से कामेच्छा का दमन होता है और शुक्र का गाढ़ापन होता है तथा पुरूषत्व शक्ति की वृद्धि होती है। जो चाहकर भी इस आदत से मुक्ति नहीं पा रहे हों, उन्हें इसका सेवन अवश्य करना चाहिए।
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3. बिल्वपत्र के पत्ता रस 10 से 20 मि.ली. सुबह-शाम दें। कामेच्छा का दमन होना चाहिए। धीरे-धीरे यह बुरी आदत छूट जायेगी।
4. धनियाँ का हिम(शीतकषाय)- नियमित रूप से सेवन करने से लाभ होता है।
Hastmaithun Ke Nuksan Aur Ayurvedic Upchar
5. दो माशा मुलहठी का चूर्ण, एक तोला शुद्ध घी तथा छः माशा शहद मिलाकर सुबह के समय चाट लें और ऊपर से गाय का धारोष्ण दूध पी लें। इससे स्वप्नदोष ठीक हो जाता है।
6. प्रतिदिन सुबह तीन-चार गुलाब के फूल मिश्री के साथ खाकर दूध पीने से स्वप्नदोष में लाभ होता है।
7. गोखरू, सूखे आँवलें तथा गिलोय समभाग लेकर महीन पीस लें। दो माशा चूर्ण में घी तथा शक्कर मिलाकर खाने से हस्तमैथुन की कमजोरी समाप्त हो जाती है।
8. 6 माशा से 1 तोला तक बबूल के कोमल पत्ते खाकर ठण्डा पानी पीने से हस्तमैथुन से आई कमजोरी के साथ ही स्वप्नदोष दूर होता है।
9. डेढ़ माशा हींग तथा पांच अण्डों की जर्दी मिलाकर खाने से मैथुनेच्छा में वृद्धि होती है।
10. बिदारीकन्द का चूर्ण बनाकर रख लें। दो तोला चूर्ण गूलर के स्वरस में मिलाकर चाटें और ऊपर से दूध में घी मिलाकर पी जायें, इससे कामोत्तेजना बढ़ती है और हस्तमैथुन के द्वारा वीर्य विकार भी समाप्त हो जाते हैं।
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